बिहार बॉक्सिंग के बदहाली की दास्तान भाग 4
बिहार बॉक्सिंग के बदहाली की दास्तान भाग 4।
मित्रों आपने मेरे पिछले लेखों को अधिक से अधिक शेयर किया एवं अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दी इसके लिए मैं आप सब का हृदय से आभारी हूं। इसी क्रम में देश के विभिन्न कोणों से मुझे संदेश प्राप्त हुए जिसमें मेरे मित्रों ने यह जानना चाहा कि आखिर राजीव कुमार सिंह की ऐसी क्या मजबूरी है कि वह भारतीय रेल में टीटी होने के अलावा भी विभिन्न खेलों में इतने सारे पदों पर बने हुए हैं साथ ही साथ गैस एजेंसी भी ले रखा है। इसी प्रश्न का उत्तर ढूंढते हुए मैंने अनुसंधान किया जिसके उपरांत मुझे यह पता चला कि यह व्यक्ति नशे का आदी है आमतौर पर लोगों को शराब का या सिगरेट का नशा होता है जिस लत को छुड़ाने के लिए उन लोगों को नशा मुक्ति केंद्र भेजा जाता है परंतु राजीव कुमार सिंह को पैसों का नशा है और दुर्भाग्यवश इस नशे का कहीं भी कोई नशा मुक्ति केंद्र नहीं है जहां हम इनका इलाज करवा सकते हैं। तो चलिए इसी क्रम में राजीव कुमार सिंह के बारे में और भी कुछ बातें जानेंगे।
बिहार के खिलाड़ी किसी वजह से राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों में देश के दूसरे राज्यों के मुकाबले पदक जीतने में थोड़े से पीछे रह जाते हैं तो बिहार सरकार ने खिलाड़ियों के प्रति उदारता दिखाते हुए बिहार में खेलों को बढ़ावा देने हेतु एक योजना बनाई जिसमें कोई भी खिलाड़ी पदक जीते बिना भी बिहार सरकार में सरकारी नौकरी पा सकता है बस उसे करना यही है कि लगातार 3 वर्षों तक उसे सीनियर उम्र वर्ग के राष्ट्रीय प्रतियोगिता में सिर्फ भाग ले लेना है। यह तो थी हमारी बिहार सरकार के बड़ा दिल दिखाने की बात, परंतु इस योजना के आने के बाद राजीव कुमार सिंह जैसे खेल माफिया के मन में लालच भर गया और अपनी इसी महत्वकांक्षा की पूर्ति हेतु यह राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में छल कपट प्रपंच का प्रयोग करने लगे। राजीव कुमार सिंह ने बिहार सरकार की इस योजना का लाभ लेते हुए खिलाड़ियों को सीनियर राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भेजने के लिए रुपए लेना शुरू कर दिया। मित्रों यह बात मैं पूर्ण जिम्मेदारी के साथ कह रहा हूं जिसका मेरे पास साक्ष्य भी उपलब्ध है जिसे मैं कभी भी आवश्यकता पड़ने पर सार्वजनिक कर सकता हूं। मित्रों मुझे बहुत खुशी होगी अगर राजीव कुमार सिंह मेरी इन बातों का साक्ष्य के साथ खंडन करते हैं।
अब आप ही सोचिए यह व्यक्ति बिहार सरकार से खेल कराने के लिए आर्थिक अनुदान लेते हैं और राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में एंट्री फीस के रूप में प्रत्येक खिलाड़ी से यह ₹500 वसूलते हैं (जिसकी कोई भी रसीद नहीं देते)। जबकि राष्ट्रीय प्रतियोगिता में इनके खास खिलाड़ी ही भाग लेने जाते हैं, यह वही खिलाड़ी होते हैं जो एंट्री फी के अलावा भी राजीव कुमार सिंह को अतिरिक्त पैसा देते हैं।
मैं यह कहना चाहता हूं कि अगर राजीव कुमार सिंह को अपने खास खिलाड़ियों को ही राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भेजना है तो यह राज्य स्तरीय प्रतियोगिता का प्रपंच आखिर क्यों? सिर्फ और सिर्फ पैसों के लिए। राजीव कुमार सिंह एंट्री फीस के रूप में लाखों रुपए खिलाड़ियों से प्रत्येक वर्ष वसूलते हैं और बदले में सुविधा के नाम पर मच्छर से भरा हुआ कमरा और दो टाइम चौथे दर्जे का घटिया भोजन (कभी-कभी तो पैसा बचाने के लिए यह भोजन भी गायब कर दिया जाता है) । किसी भी मैच की वीडियो रिकॉर्डिंग नहीं की जाती। आज तक नहीं हुई। वह बस इसलिए कि यह छल कपट से अपने अतिरिक्त पैसा देने वाले खिलाड़ियों को जितवा सकें। जब किसी खिलाड़ी के साथ बेईमानी होती है तो वह आपत्ति दर्ज कराता है और निर्णायक मंडली वीडियोग्राफी देखते हैं और उचित फैसला करते हैं, वीडियोग्राफी की व्यवस्था तो राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हर जगह उपलब्ध रहती है यहां तक कि अन्य खेलों के राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में भी, जबकि राजीव कुमार सिंह अपने छल और प्रपंच को छुपाने के लिए यह व्यवस्था राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में नहीं करते हैं। मित्रों अगर राजीव कुमार सिंह के मन में कोई छल कपट नहीं है तो वह मुझे इस बात का उत्तर दें कि राज्य स्तरीय बॉक्सिंग प्रतियोगिता की वीडियो रिकॉर्डिंग आखिर क्यों नहीं करवाई जाती है?
बिहार सरकार के द्वारा दिए गए आर्थिक अनुदान के अलावा अनेक ऐसे संस्था हैं जोकि खेल कराने के लिए बॉक्सिंग एसोसिएशन ऑफ़ बिहार को चंदा देते हैं जिसकी कोई भी रसीद बदले में उस संस्था को नहीं दी जाती है और सारा का सारा पैसा राजीव कुमार सिंह की काली कमाई में चला जाता है ना की बॉक्सिंग एसोसिएशन ऑफ बिहार के बैंक खाते में।
राजीव कुमार सिंह पैसों के लिए इतने गिरे हुए हैं कि राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में दिन रात अपना खून पसीना एक कर सेवा देने वाले रैफरी एवं जजों का भी पैसा खा जाते हैं यह रिकॉर्ड है कि आज तक बिहार में जितने भी राज्य स्तरीय प्रतियोगिता राजीव कुमार सिंह ने आयोजित कराए हैं उन्होंने ₹1 भी मानदेय के रूप में किसी भी रेफरी या जज को नहीं दिया है उल्टा यह समय समय पर रैफरी एवं जज को अपमानित भी करते रहते हैं। रेफरी जज बेचारा स्वयं का पैसा खर्च कर राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में सेवा देने पहुंचता है और बदले में ना कोई यात्रा भत्ता मिलता है और ना ही कोई दैनिक मजदूरी भत्ता। मित्रों इस तरह का शोषण भारत में तो क्या समग्र विश्व में कहीं नहीं होता है।
इसी के साथ इस गिरे हुए आदमी के ऊपर लेख का भाग 4 समाप्त करता हूं और जल्द ही भाग 5 के साथ आपसे मिलूंगा।
धन्यवाद।
मित्रों आपने मेरे पिछले लेखों को अधिक से अधिक शेयर किया एवं अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दी इसके लिए मैं आप सब का हृदय से आभारी हूं। इसी क्रम में देश के विभिन्न कोणों से मुझे संदेश प्राप्त हुए जिसमें मेरे मित्रों ने यह जानना चाहा कि आखिर राजीव कुमार सिंह की ऐसी क्या मजबूरी है कि वह भारतीय रेल में टीटी होने के अलावा भी विभिन्न खेलों में इतने सारे पदों पर बने हुए हैं साथ ही साथ गैस एजेंसी भी ले रखा है। इसी प्रश्न का उत्तर ढूंढते हुए मैंने अनुसंधान किया जिसके उपरांत मुझे यह पता चला कि यह व्यक्ति नशे का आदी है आमतौर पर लोगों को शराब का या सिगरेट का नशा होता है जिस लत को छुड़ाने के लिए उन लोगों को नशा मुक्ति केंद्र भेजा जाता है परंतु राजीव कुमार सिंह को पैसों का नशा है और दुर्भाग्यवश इस नशे का कहीं भी कोई नशा मुक्ति केंद्र नहीं है जहां हम इनका इलाज करवा सकते हैं। तो चलिए इसी क्रम में राजीव कुमार सिंह के बारे में और भी कुछ बातें जानेंगे।
बिहार के खिलाड़ी किसी वजह से राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों में देश के दूसरे राज्यों के मुकाबले पदक जीतने में थोड़े से पीछे रह जाते हैं तो बिहार सरकार ने खिलाड़ियों के प्रति उदारता दिखाते हुए बिहार में खेलों को बढ़ावा देने हेतु एक योजना बनाई जिसमें कोई भी खिलाड़ी पदक जीते बिना भी बिहार सरकार में सरकारी नौकरी पा सकता है बस उसे करना यही है कि लगातार 3 वर्षों तक उसे सीनियर उम्र वर्ग के राष्ट्रीय प्रतियोगिता में सिर्फ भाग ले लेना है। यह तो थी हमारी बिहार सरकार के बड़ा दिल दिखाने की बात, परंतु इस योजना के आने के बाद राजीव कुमार सिंह जैसे खेल माफिया के मन में लालच भर गया और अपनी इसी महत्वकांक्षा की पूर्ति हेतु यह राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में छल कपट प्रपंच का प्रयोग करने लगे। राजीव कुमार सिंह ने बिहार सरकार की इस योजना का लाभ लेते हुए खिलाड़ियों को सीनियर राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भेजने के लिए रुपए लेना शुरू कर दिया। मित्रों यह बात मैं पूर्ण जिम्मेदारी के साथ कह रहा हूं जिसका मेरे पास साक्ष्य भी उपलब्ध है जिसे मैं कभी भी आवश्यकता पड़ने पर सार्वजनिक कर सकता हूं। मित्रों मुझे बहुत खुशी होगी अगर राजीव कुमार सिंह मेरी इन बातों का साक्ष्य के साथ खंडन करते हैं।
अब आप ही सोचिए यह व्यक्ति बिहार सरकार से खेल कराने के लिए आर्थिक अनुदान लेते हैं और राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में एंट्री फीस के रूप में प्रत्येक खिलाड़ी से यह ₹500 वसूलते हैं (जिसकी कोई भी रसीद नहीं देते)। जबकि राष्ट्रीय प्रतियोगिता में इनके खास खिलाड़ी ही भाग लेने जाते हैं, यह वही खिलाड़ी होते हैं जो एंट्री फी के अलावा भी राजीव कुमार सिंह को अतिरिक्त पैसा देते हैं।
मैं यह कहना चाहता हूं कि अगर राजीव कुमार सिंह को अपने खास खिलाड़ियों को ही राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भेजना है तो यह राज्य स्तरीय प्रतियोगिता का प्रपंच आखिर क्यों? सिर्फ और सिर्फ पैसों के लिए। राजीव कुमार सिंह एंट्री फीस के रूप में लाखों रुपए खिलाड़ियों से प्रत्येक वर्ष वसूलते हैं और बदले में सुविधा के नाम पर मच्छर से भरा हुआ कमरा और दो टाइम चौथे दर्जे का घटिया भोजन (कभी-कभी तो पैसा बचाने के लिए यह भोजन भी गायब कर दिया जाता है) । किसी भी मैच की वीडियो रिकॉर्डिंग नहीं की जाती। आज तक नहीं हुई। वह बस इसलिए कि यह छल कपट से अपने अतिरिक्त पैसा देने वाले खिलाड़ियों को जितवा सकें। जब किसी खिलाड़ी के साथ बेईमानी होती है तो वह आपत्ति दर्ज कराता है और निर्णायक मंडली वीडियोग्राफी देखते हैं और उचित फैसला करते हैं, वीडियोग्राफी की व्यवस्था तो राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हर जगह उपलब्ध रहती है यहां तक कि अन्य खेलों के राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में भी, जबकि राजीव कुमार सिंह अपने छल और प्रपंच को छुपाने के लिए यह व्यवस्था राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में नहीं करते हैं। मित्रों अगर राजीव कुमार सिंह के मन में कोई छल कपट नहीं है तो वह मुझे इस बात का उत्तर दें कि राज्य स्तरीय बॉक्सिंग प्रतियोगिता की वीडियो रिकॉर्डिंग आखिर क्यों नहीं करवाई जाती है?
बिहार सरकार के द्वारा दिए गए आर्थिक अनुदान के अलावा अनेक ऐसे संस्था हैं जोकि खेल कराने के लिए बॉक्सिंग एसोसिएशन ऑफ़ बिहार को चंदा देते हैं जिसकी कोई भी रसीद बदले में उस संस्था को नहीं दी जाती है और सारा का सारा पैसा राजीव कुमार सिंह की काली कमाई में चला जाता है ना की बॉक्सिंग एसोसिएशन ऑफ बिहार के बैंक खाते में।
राजीव कुमार सिंह पैसों के लिए इतने गिरे हुए हैं कि राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में दिन रात अपना खून पसीना एक कर सेवा देने वाले रैफरी एवं जजों का भी पैसा खा जाते हैं यह रिकॉर्ड है कि आज तक बिहार में जितने भी राज्य स्तरीय प्रतियोगिता राजीव कुमार सिंह ने आयोजित कराए हैं उन्होंने ₹1 भी मानदेय के रूप में किसी भी रेफरी या जज को नहीं दिया है उल्टा यह समय समय पर रैफरी एवं जज को अपमानित भी करते रहते हैं। रेफरी जज बेचारा स्वयं का पैसा खर्च कर राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में सेवा देने पहुंचता है और बदले में ना कोई यात्रा भत्ता मिलता है और ना ही कोई दैनिक मजदूरी भत्ता। मित्रों इस तरह का शोषण भारत में तो क्या समग्र विश्व में कहीं नहीं होता है।
इसी के साथ इस गिरे हुए आदमी के ऊपर लेख का भाग 4 समाप्त करता हूं और जल्द ही भाग 5 के साथ आपसे मिलूंगा।
धन्यवाद।
Sir plzz help mera age 19 saal h mai Bihar boxing association me jata hu to waha ke guard Rajeev sir se nhi milne dete sir plzz bus mujhe tournament kab kab hai wahi janna hai
ReplyDelete